म्यूच्यूअल फंड निवेश का एक ऐसा तरीका होता है जिसमें अलग अलग लोगों से पूँजी या पैसा इक्ट्ठा करके उसे स्टॉक्स, बॉन्डस और अन्य फायनेंशियल ऐसेट में निवेश किया जाता है। निवेश पर होने वाले लाभ को लोगों मे उनकी रकम के अनुसार साझा कर दिया जाता है। यह कार्य कोई कंपनी भी कर सकती है। स्टॉक्स, बॉन्ड और फायनेंशियल ऐसेट की सभी मिलत को उस कंपनी का पोर्टफोलियो कहा जाता है। प्रत्येक म्यूच्यूअल फंड की देख रेख का कार्यभार ऐसेट मैनेजर को दिया जाता है।
भारतीय रिजर्व बैंक और भारत सरकार के द्वारा वर्ष 1963 मे म्यूच्यूअल फंड की शुरुआत की गई। म्यूच्यूअल फंड का मुख्य उद्देश्य छोटे निवेशकों की निवेश मे सहायता करना था। अगर वर्तमान की बात की जाए तो म्यूच्यूअल फंड मे निवेश करने वालों की संख्या 5 करोड़ से भी अधिक है और हर महीने लाखो नए निवेशक इससे जुड़ते जा रहे हैं।
आसान भाषा में कहा जाए तो म्यूच्यूअल फंड बहुत सारे या एक से अधिक लोगों के पैसों से बना हुआ फंड होता है। जिसका पैसा अलग अलग जगह निवेश किया जाता है। निवेश का उद्देश्य निवेशक को लगाए गए पैसों से अधिक लाभ पाने के लिए होता है।
कौन करता है म्यूच्यूअल फंड की देख रेख?
म्यूच्यूअल फंड के प्रबंधित करने के लिए पेशेवर फंड मैनेजर की जरूरत होती है। मैनेजर का मुख्य काम फंड की देख रेख करना और फंड के पैसे को सही जगह पर निवेश कर लोगों को मुनाफा कमा कर देना होता है।
अगर म्यूच्यूअल फंड की सत्यता की बात की जाए तो यह सेबी (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) के अंतर्गत पंजीकृत है। सेबी भारत में बाजार पर नियंत्रण के साथ निवेशकों के पैसे को सुरक्षित रखने का काम भी करता है।
सामन्यतः लोगों की म्यूच्यूअल फंड को लेकर धारणा सही नहीं है। नफा नुकसान सभी जगह हो सकता है। हालांकि फंड मैनेजर की कोशिश निवेशकों को मुनाफा कमा कर देने की ही होती है। आज के समय में एक आम नागरिक भी म्यूच्यूअल फंड मे निवेश कर सकता है। अगर पूंजी की बात की जाए तो आप सिर्फ 500 रुपये प्रति महीने की दर से भी निवेश कर सकते हैं।